तेजी से वायरल हो रही यह कर्मनाशा नदी अपने आप मैं एक इतिहास रखती है इसकी कहानी बड़ी ही हैरान कर देने वाली है कर्मनाशा नदी के बारे अनेकों दंत कथाएँ भी हैं। दरअसल यह कर्मनाशा नदी उत्तर प्रदेश से सोनभद्र, चंदौली, वाराणसी और गाजीपुर से होकर बहती है देखा जाए तो भारत मैं गंगा समेत बहुत सारी एसी नदियां हैं जो पूजी जाती हैं । परंतु आज आपको हम एसी नदी के बारे मैं बता रहे हैं जिसका पानी पूजना तो दूर की बात है इसका पानी छूना तक मना है ।
जिसका कौफ लोगों के दिलों मैं गहराई तक बसा हुआ है दरअसल इस नदी का नाम कर्मनाशा नदी है।जिसका संधि विछेद करें तो कर्म+नाश होता है जिसका सीधा सीधा मतलब आप कर्मों के नाश से लगा सकते हैं। आइए जानते हैं क्या है इसमें ऐसा खास बातें ।
कर्मनाशा नदी
श्रापित है कर्मनाशा नदी
ऐसा कहा जाता है की प्राचीन काल मैं कर्मनाशा नदी के आस पास रहने वाले लोग इस नदी का पानी पीने से परहेज किया करते थे अधिकतर लोग अपना गुजारा फलों को खाकर करते थे कितनी भी गहरी प्यास क्यूँ न लगी हो फिर भी लोग इसका पानी नहीं पीते थे इसके पीछे लोगों का मानना था की यह नदी श्रापित नदी है इसका पानी जो भी पीना तो दूर की बात है छूएगा भी उसके सभी अच्छे कर्म नस्ट हो जाएंगे। वह राजा से रंक बन जाएगा । यही नहीं बल्कि जो भी उस व्यक्ति के अच्छे कार्य होने होंगे वह भी नहीं हो पाएंगे यह नदी इतनी बुरी नदी थी ।
भोगोलिक दृष्टि से यह नदी उत्तर प्रदेश से बहने वाली का कुल लंबाई करीब 192 किलोमीटर है तथा इसका 116 किलोमीटर का हिस्सा उत्तर प्रदेश के अंदर आता है । अब आपके मन मैं यह भी सवाल उठ रहा होगा आखिर यह नदी भी गंगा मैं मिल जाती है तो तब लोगों के पाप केसे धूल जाते हैं दोस्तों इसका भी जवाब हमारे पास है आप पढ़ते रहिए आगे की कहानी ।
कर्मनाशा नदी
यह है कर्मनाशा नदी की कहानी
एक बहुत पुरानी कहानी के अनुसार कहा जाता है की जब राजा हरिश्चंद्र के सत्यव्र्त अपने गुरु वसिष्ठ से वरदान मांग रहे थे तो तब उन्होने स्वर्ग मैं जाने की इच्छा प्रगट किया तब गुरु वसिष्ठ ने उनकी यह वर के लिए मना कर दिया था । इस बात की शिकायत करने फिर वह विश्वामित्र के पास चले गए ओर उनको सारा यह घटना क्रम बताया विश्वामित्र की गुरु वसिष्ठ से सत्रुता होने के कारण राजा सत्यवर्त की बात मानते हुए उन्हें स्वर्ग भेजने के लिए तैयार हो गए ।
यह सब देख देवराज इन्द्र क्रोधित हो उठे अपने क्रोध मैं आकर राजा को उल्टा ही धरती पर भेज दिया इधर से विश्वामित्र ने भी अपने तप बल से उन्हें बीच मैं ही रोक दिया फिर राजा का नाम त्रिसंकु पड़ गया । ओर उनके मुंह से एक लार टपकने लगी जेसे की वह सिर के बल धरती और स्वर्ग के बीचों बीच अटके हुए थे फिर वह लार नदी मैं बदल गयी । यह नदी बनने का पूरा चक्र ऋषि वसिष्ठ के श्राप का कारण था जिससे यह नदी श्रापित हो गयी अब यह आगे चलकर गंगा मैं बिलिन होने के इसका दुष्प्रभाव समाप्त हो गया था ।