भारतीय पत्रकारिता में लाइसेंस की अनिवार्यता क्यों है



भारतीय पत्रकारिता में लाइसेंस की अनिवार्यता क्यों है

भारतीय पत्रकारिता में लाइसेंस की अनिवार्यता क्यों है



सरकार के मुख्य सेंसर अधिकारी के रूप में कार्य कर चुके जॉन ऐडम सन 1823 में स्थानापन्न कार्यवाहक गवर्नर जनरल बने एडम तथा तत्कालीन अधिकारियों ने प्रेस की स्वतंत्रता को कंपनी के शासन के लिए खतरा माना भारत में प्रथम प्रेस अधिनियम जारी करने का उत्तरदायित्व ने डंपर ही है इस अधिनियम के तहत बिना सरकारी स्वीकृति के इस प्रकार का कोई समाचार पत्र पत्रिका पुस्तक तथा कोई विज्ञप्ति प्रकाशित करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है जिसमें सरकारी नीति या कार्यपद्धती के संबंध में कोई सूचना अथवा टीका टिप्पणी की गई हो.
इस प्रकार सरकार के मुख्य सचिव से प्रकाशन संबंधी लाइसेंस प्राप्त करने के लिएएक हलफनामा देना भी आवश्यक कर दिया गया जिसमें समाचार पत्र पत्रिका पुस्तिका या पेंपलेट के प्रकाशन का नाम तथा पूरा पता दिया गया हो.


महाद्वीपों की संख्या यदि 2 से अधिक हो तो उसमें बड़े हिस्सेदार का पूरा ब्यौरा देना जरूरी कर दिया गया यह भी आवश्यक कर दिया गया कि जिस मकान या स्थान में समाचार पत्र आदि की प्रकाशन होता है उसका विस्तृत विवरण स्वरूप प्रस्तुत किया जाए मुद्रक प्रकाशक या स्वामी अथवा स्थान में परिवर्तन होने पर उन्होंने लाइसेंस के लिए प्रार्थना पत्र देना अनिवार्य कर दिया गया बिना लाइसेंस के समाचार पत्र या अन्य किसी भी प्रकार के प्रकाशन पर ₹400 का जुर्माना तथा 6 माह की जेल तक की सजा का प्रावधान किया गया है.
प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना के बारे में भी नहीं नियंत्रण लागू किए गए इस नियंत्रण ओं के कारण अब लाइसेंस दिए बिना पुस्तकों या टेंपलीटो का प्रकाशन और प्रेस का उपयोग करने पर ₹100 का जुर्माना तथा छह माह तक सजा का प्रावधान किया गया सरकार को ऐसे प्रेस जब्द कर लेने की भी अधिकार मिल गई सरकार यदि चाहे तो समाचार पत्रों या परसों को दिए गए लाइसेंस की वापसी कर सकती है यह जुर्माना एवं दंड समय अनुसार बढ़ाया जा सकता है.


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