बकिंघम एक साहसी अंग्रेज संपादक
आइए जानते हैं बकिंघम की 1 साल से अंग्रेज संपादक के बारे में भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में सर जेम्स सिल्क बकिंघम महत्वपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में उभरे 1818 में कोलकाता जनरल के संपादन भार संभालने के बाद उन्होंने अपनी पत्रकार या प्रतिमा तथा सूक्ष्म दृष्टि से पत्र को युगीन पत्रकारिता के मानचित्र में तेजस्विता और निर्भीकता का पर्याय बना दिया.
इसमें संपादक का कर्तव्य गवर्नर को उनके कर्तव्यों के प्रति सावधान करना उन्हें उनके दोस्तों के बारे में उग्रता से चेतावनी देना और अप्रिय सत्य प्रकट करना था लॉर्ड हेस्टिंग्स तथा जॉन ऐडम्स के लिए उसने काफी परेशानियां उत्पन्न कर दी अनेक लोगों को पत्रकारिता के लिए प्रोत्साहित करने वाले इस प्रतिभाशाली व्यक्ति की गतिविधियों को कंपनी सहन नहीं कर सकी और सन 18 सो 23 में उसे देश से निर्वासित कर दिया गया एस नटराजन लिखते हैं उसने समाचार पत्र को जनता का दर्पण बना दिया अन्वेषण तथा आलोचना की भावना को प्रखरता के साथ सतत प्रदर्शित तथा प्रेस को उसने नेतृत्व का गुण प्रदान किया बकिंघम का पत्र समाचारों की विविधता से संपूर्ण रहता था पत्रकार स्तंभ correspondence colamn के माध्यम से उसने आम व्यक्ति को अपनी पीड़ा ओं कठिनाइयों तथा समस्याओं को रखने का अवसर प्रदान किया तत्कालीन भारत की राजनैतिक सामाजिक तथा आर्थिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों का सूक्ष्म विश्लेषण उसने किया बकिंघम ने ईस्ट इंडिया कंपनी की एकाधिकार वादी प्रवृत्तियों की आलोचना की वह प्रेस को एक ऐसी शक्ति मानता था जो कि अनु उत्तरदाई सरकार पर नियंत्रण कर सकती है बकिंघम के कलकत्ता जनरल को विशिष्ट पत्र बना दिया जिसके कारण इसकी प्रसार संख्या में भी भारी वृद्धि हो गई 1000 से अधिक की प्रसार संख्या वाले इस पत्र के माध्यम से बकिंघम ने मुख्य न्यायाधीश मद्रास के गवर्नर तथा कलकत्ता के लॉर्ड विश्व की कटु आलोचना की 1823 में लोड एडम के गवर्नर बनते ही इसे इंग्लैंड भेज दिया गया इंग्लैंड में उसने ओरिएंटल हेराल्ड पत्र शुरू किया इसके माध्यम से तथा सन 1832 में संसद सदस्य के रूप में उसने भारत में कंपनी प्रशासन पर प्रहार किया तथा प्रेस को नियंत्रित किया जाने वाले प्रयासों का विरोध किया भारत में प्रेस की स्वतंत्रता के लिए किए जाने वाले संघर्ष में बकिंघम का महत्वपूर्ण स्थान है.
एडम के प्रेस नियंत्रण मुख्यतः भारतीय भाषाओं के भारतीयों द्वारा संपादित पत्रों के खिलाफ अधिक कठोर से में की अंग्रेजी भाषा को अंग्रेजी स्वामित्व वाले पत्रों के उस युग में मात्र कलकत्ता जनरल ही एक समाचार पत्र था जिसके अंग्रेज संपादक और यूरोप निर्वाचित किया गया था अन्य किसी पर पत्र को जो अंग्रेजों का था लाइसेंस सुविधा से वंचित नहीं किया था अंग्रेज संपादकों को चेतावनी देने के प्रसंग तो मिलते हैं किंतु उनके खिलाफ विशेष कार्यवाही नहीं की जाती थी.
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साहित्य